नई दिल्ली, 20 सितम्बर ( धमीजा ) : अमरीका अब भारतीयों से H-1B वीजा के लिए हर साल एक लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपए) एप्लिकेशन फीस वसूलेगा। इस फैसले के बाद अमेरिकी टेक कंपनी माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, फाइनेंशियल कंपनी जेपी मॉर्गन और ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन ने अपने विदेशी कर्मचारियों को तुरंत अमेरिका लौटने की सलाह दी है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 19 सितंबर को व्हाइट हाउस में इस ऑर्डर पर साइन किए, जिसमें H-1B वीजा पर 1 लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपए) का सालाना सरचार्ज लगाया गया है। ये नए चार्ज 21 सिंतबर से लागू होंगे।
रॉयटर्स के मुताबिक, माइक्रोसॉफ्ट ने शनिवार को अपने कर्मचारियों को एक इंटरनल ईमेल भेजा, जिसमें H-1B और H-4 वीजा धारकों को तुरंत अमेरिका लौटने को कहा है। मेटा ने भी कर्मचारियों को ऐसा ही अलर्ट जारी किया है।
माइक्रोसॉफ्ट ने कहा, ‘H-1B वीजा धारक अगले कुछ समय तक अमेरिका में ही रहें। H-4 वीजा धारकों को भी यही सलाह है। हमारी सिफारिश है कि दोनों तरह के वीजा धारक 21 सितंबर की डेडलाइन से पहले यानी रविवार तक अमेरिका पहुंच जाएं।’
कई कंपनियों ने भेजे अलर्ट मेसेज
जेपी मॉर्गन ने भी अपने ग्लोबल कर्मचारियों को ऐसा ही अलर्ट जारी किया। कंपनी ने अपने H-1B और H-4 वीजा धारक कर्मचारियों को सतर्क रहने और अमेरिका में ही रहने की सलाह दी है।
अमेजन ने भी अपने कर्मचारियों को चेतावनी दी है कि वे 21 सितंबर की रात 12 बजे ईस्टर्न डेलाइट टाइम यानी EDT (भारतीय समयानुसार सुबह 9:31 बजे) से पहले अमेरिका लौट आएं। अमेजन ने भारतीय और अन्य विदेशी कर्मचारियों को सलाह दी है कि वे फिलहाल इंटरनेशनल ट्रैवल से बचें।
दूसरे देश की फ्लाइट्स से उतरे भारतीय, अमरीका जाने वाली फ्लाइट्स का किराया लगभग दोगुना हुआ
इस खबर के बाद देश लौट रहे भारतीय यात्रियों में हड़कंप मच गया। सैन फ्रांसिस्को से भारत आ रही फ्लाइट में कई भारतीय यात्रियों ने बैठने के बाद ही विमान से उतरने की मांग कर दी। दुबई से अमेरिका जा रही फ्लाइट में बैठे कई यात्री भी एयरपोर्ट पर ही उतर गए। उन्हें डर था कि वे समय पर अमेरिका नहीं पहुंच पाएंगे और नए नियम लागू होने के बाद दोबारा एंट्री मुश्किल होगी।
वहीं, छुट्टियों या त्योहारों के लिए भारत आए कई भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स अब फंस गए हैं। ट्रम्प के ऐलान के तुरंत बाद भारत-अमेरिका फ्लाइट का किराया दोगुना हो गया। दिल्ली से न्यूयॉर्क के लिए एकतरफा टिकट जो 37 हजार रुपए में मिल रहा था, वह 70-80 हजार रुपए तक पहुंच गया।
अब काम के लिए अमरीका जाने वाले भारतीयों को अदा करनी होगी भारी भरकम रकम

H-1B वीजा का इस्तेमाल ज्यादातर भारतीय और अन्य देशों के टेक प्रोफेशनल्स करते हैं, जो अमेरिका में नौकरी के लिए जाते हैं। इस नए नियम से भारतीय कर्मचारियों पर बड़ा असर पड़ सकता है। कंपनियों को अब हर कर्मचारी के लिए भारी-भरकम फीस देनी होगी, जिससे उनकी लागत बढ़ेगी। साथ ही जो कर्मचारी अभी भारत या अन्य देशों में हैं, उन्हें जल्द से जल्द अमेरिका लौटना होगा, वरना वे दाखिल नहीं हो पाएंगे।
H-1B वीजा के लिए पहले औसतन 5 लाख रुपए लगते थे। यह 3 साल के लिए मान्य होता था। इसे 3 साल के लिए रिन्यू किया जा सकता था। अब अमेरिका में H-1B वीजा के लिए 6 साल में 5.28 करोड़ लगेंगे, यानी खर्च करीब 50 गुना से ज्यादा बढ़ जाएगा। अमेरिकी सरकार हर साल लॉटरी से 85,000 H-1B वीजा जारी करती है, जिनका इस्तेमाल ज्यादातर टेक नौकरियों में होता है। सबसे ज्यादा भारतीय (72%) इसका इस्तेमाल करते हैं। अब वीजा फीस बढ़ने से 3 लाख से ज्यादा भारतीयों पर इसका सीधा असर पड़ेगा।
भारत आये कर्मचारियों को रातोंरात पहुंचना है अमरीका
अगर आप H-1B या H-4 वीजा धारक हैं और अभी भारत या किसी अन्य देश में हैं, तो तुरंत अपनी कंपनी के HR डिपार्टमेंट से संपर्क करें। माइक्रोसॉफ्ट, जेपी मॉर्गन और अमेजन जैसी कंपनियां अपने कर्मचारियों को सपोर्ट करने के लिए गाइडलाइंस जारी कर रही हैं। बेहतर होगा कि आप 21 सितंबर की डेडलाइन से पहले अमेरिका पहुंच जाएं, ताकि किसी भी तरह की परेशानी से बच सकें।
इस नए नियम से टेक और फाइनेंशियल सेक्टर में काम करने वाले विदेशी कर्मचारियों के लिए चुनौतियां बढ़ सकती हैं। कंपनियों को अब ये देखना होगा कि वे इस बढ़ी हुई फीस को कैसे मैनेज करती हैं और अपने कर्मचारियों को कैसे सपोर्ट करती हैं। फिलहाल, कर्मचारियों के लिए सबसे जरूरी है कि वे अपनी कंपनी की सलाह मानें और जल्द से जल्द जरूरी कदम उठाएं।
अब अन्य देशों की ओर रुख कर सकते हैं भारतीय
भारत हर साल लाखों इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस के ग्रेजुएट तैयार करता है, जो अमेरिका की टेक इंडस्ट्री में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इंफोसिस, TCS, विप्रो, कॉग्निजेंट और HCL जैसी कंपनियां सबसे ज्यादा अपने कर्मचारियों को H-1B वीजा स्पॉन्सर करती हैं।
कहा जाता है कि भारत अमेरिका को सामान से ज्यादा लोग यानी इंजीनियर, कोडर और छात्र एक्सपोर्ट करता है। अब फीस महंगी होने से भारतीय टैलेंट यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, मिडिल ईस्ट के देशों की ओर रुख कर सकता है।